संदेश
नहीं रोया कभी पशु - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
नहीं रोया कभी पशु उसने नहीं किसी का विश्वास तोड़ा नहीं कभी वो झूठ बोला नहीं किसी को धोखा दिया नहीं कभी विद्रोह किया कर दिया अपना जीवन…
मैं वृक्ष वृद्ध हो चला - कविता - राम प्रसाद आर्य
फूलना-फलना था जो, दिन व दिन कम हो चला। वृद्धपन बढ़ता चला, यौवन का जोश अब ढँला। मैं वृक्ष वृद्ध हो चला॥ हर पात पीत हो चले, कली हर सिकुड…
वृक्ष महिमा - दोहा छंद - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
धरती को दुख दे रहे, धूल,धुआ अरु शोर। इनसे लड़ना हो सुलभ, वृक्ष लगे चहु ओर॥ विटप औषधी दे रहे, रोके रेगिस्तान। तरुवर मीत वसुन्धरा, कलियुग…
हे तरुवर! - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
हे तरुवर! गर तुम न होते साँस कहाँ से लाते हम? खट्टा-मीठा और रसीला स्वाद कहाँ से पाते हम? लाल गुलाबी नीले पीले ख़ुशबू वाले फूल न होते, क…
शीशम-सागौन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
घर-घर पहचाने है शीशम-सागौन! महिमा है इनकी भी कुछ कम नही! इमारती लकड़ी है बेदम नही! भोर उठी कर रही नीम का दातौन! होता है पेड़ से स्वच्छ…
पेड़ - कविता - गोपाल जी वर्मा
हरे पेड़, भरे पेड़, आँधी तूफ़ान से, लड़े पेड़। धूप में छाँव देने को, खड़े पेड़। फल-फूल देने के लिए, सजे पेड़। झूला झूलने के लिए, निभे पे…
तुम मुझे संरक्षण दो, मैं तुम्हें हरियाली दूँगा - कविता - पारो शैवलिनी
काटो और काटो और और काटो क्योंकि, कटना ही तो नियति है मेरी। अगर कटूँगा नहीं तो बटूँगा कैसे? कभी छत, कभी चौखट कभी खिडक़ी, कभी खम्भों क…