संदेश
संरक्षण करो - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
जल, जंगल, ज़मीन ये सिर्फ़ प्रकृति का उपहार भर नहीं है, हमारा जीवन भी है हमारे जीवन की डोर इन्हीं पर टिकी है, धरती न रहेगी तो आख़िर कैसे …
गुफ़्तुगू - कविता - रामासुंदरम
कुछ पल पहले धूप का जो शरारती थक्का खिड़की के फर्मे को जकड़े था, वह अब सहमा सा कतरन बन आँगन पर उतर आया था। शायद शाम की तेज़ी को वह रोक…
पर्यावरण - गीत - महेश चन्द सोनी "आर्य"
पर्यावरण हमारा, हम सबको वो प्यारा। पर्यावरण हो शुद्ध अगर तो जीवन सुखी हमारा। हवा शुद्ध नहीं शुद्ध नहीं जल, रोज़ करें पेड़ों का क़त्ल ह…
अंकुरण - कविता - असीम चक्रवर्ती
सूरज मेघों के संग लुका-छिपी खेल रहा था, देखते ही देखते बर्षा की बूँदें झर झर टपकने लगीं। माटी की सोंधी महक फैल गई चारों ओर वातावरण म…
क़ुदरत की चिट्ठी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हे! इंसान हे महामानव!! तुम्हें एक बात कहनी थी। मैं क़ुदरत, लिख रही हूँ, आज एक ख़त तुम्हारे नाम। मैं ठहरी तुम्हारी माँ जैसी, जो अप्रतिम प…
जंगल युग की ज़रूरत - लेख - देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन"
सभी जीवों में अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता नहीं होती। अपने भोजन की पूर्ति के लिए जीव उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। और उत्पादक हरे प…
पर्यावरण का महत्व - लेख - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ईश्वर ने पृथ्वी का निर्माण किया और फिर उसके चारों तरफ़ एक भौतिक तत्वों का आवरण निर्मित किया, जिससे इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो सके। इसी आ…