संदेश
मुखाग्नि - कहानी - डॉ॰ वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज
बंसीलाल अब एकदम बूढ़े हो चले थे। अपने से चलना-फिरना भी अब मुश्किल-सा हो रहा था। पाँच-पाँच बेटे पर सभी अपने-अपने मतलब के। पत्नी पहले ही…
रिश्ते - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
कोमल किसलय चारु ललित हिय, सदाचार अपनापन जानो। देश काल सुपात्र परिधि मध्य, रिश्ते मृदु दृढ़तम नित जानो। सुप्रभात किरण मन मधुर मनोहर…
रिश्ते लगे बिखरने - कविता - अर्चना कोहली
अपनेपन की चादर से बुने रिश्ते लगे बिखरने, ईर्ष्या-कलह के आवरण में ख़ुद को लगे भूलने। सर्द रातों में जो अलाव के चहुँ और होता था घेरा, ना…
रिश्ते - कविता - आदेश आर्य 'बसन्त'
दौलत से रिश्तो को तौल कर, क्या कोई ख़ुश रह पाया है। रिश्तो में ही है ख़ुशियाँ सारी, रिश्तो में ही संसार समाया है। कुछ बाहर के लोगों क…
बिखरते रिश्ते - कविता - डॉ॰ राजेश पुरोहित
ख़ुदगर्ज़ी के आलम में, सारे रिश्ते बिखर गए। धन दौलत के झूठे क़िस्से, वो जाने किधर गए।। प्यार की दौलत ही सच थी, एक दुनिया में मगर। आदमी ने…
कुछ जाने अनजाने रिश्ते - कविता - रमाकांत सोनी
कुछ जाने अनजाने रिश्ते, कुछ दिल से पहचाने रिश्ते। कुछ कुदरत ने हमें दिया है, कुछ हमको निभाने रिश्ते। रिश्तो की पावन डगर पर, संभल स…
आख़िरी रिश्ता - कविता - केवल जीत सिंह
आदमी का आख़िरी रिश्ता उन पेड़ की लकड़ी से होता है जिनकी आग़ोश में, जलकर इस तन को राख होना है। रिश्ता निभाने का सलीक़ा तो उन पेड़ की लकड़…