रिश्ते - कविता - आदेश आर्य 'बसन्त'

दौलत से रिश्तो को तौल कर,
क्या कोई ख़ुश रह पाया है।
रिश्तो में ही है ख़ुशियाँ सारी,
रिश्तो में ही संसार समाया है।
  
कुछ बाहर के लोगों की सुनकर,
अपने घर को क्यों तोड़े हम।
अपना हाथ थामते रिश्ते जो,
वो रिश्ते बरबस क्यों तोड़े हम।

अपनी जन्नत परिवार से जुड़ी,
'अपनों के प्यार' से रिश्ता जोड़ा है।
जिनकी फ़ितरत नफ़रत है बस,
उनसे कब किसने रिश्ता जोड़ा है।

प्यार के मोती आँखों में लेकर,
जो अपनों को गले लगाते हैं।
वाणी में मधुरता घोलकर बोले,
सच में वही परम आत्मा कहलाते हैं।

आदेश आर्य 'बसन्त' - पीलीभीत (उत्तर प्रदेश)

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