संदेश
वो रिश्ता जो छोड़ आया था - संस्मरण - भगवत पटेल
ज़िन्दगी बहुत बोलती है हमेशा कुछ न कुछ पाने की ख़्वाहिश में जितना पाती नहीं उतना छोड़ देती। चूंकि मेरा सेवा निवृत्त का समय नज़दीक है और …
रिश्तों का रुका विस्तार - गीत - रश्मि प्रभाकर
रिश्तों का रुका विस्तार, रिश्ते हो गए व्यापार, रिश्ते अब सच्चाई का प्रमाण माँगने लगे। रिश्तों में नहीं है जान, रिश्तो का रहा ना मान, र…
रिश्तों की अहमियत - कविता - विनय "विनम्र"
कुछ रिश्ते तुम कुछ हम सम्हालते हैं, आओ इन रिश्तों को बच्चों की तरह पालते हैं। दुश्वारियों की आँधियों में बिजलियों का शोर है, एक रास्ता…
सफलता के बहुतेरे रिश्तेदार - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
यह सत्य है की असफलता अनाथ होती हैं परंतु सफलता के बहुत रिश्तेदार बन जाते हैं। यूँ तो जब कोई व्यक्ति सफलता के शिखर पर होता है तो उसका क…
अश्रु भी बनता जा रहा पानी - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
जीवन की इस भागमभाग में, संवेदनाएं बन चुकी निर्जीव कहानी। अपने अपनों से ही विमुख हुए, अश्रु भी बनता जा रहा पानी। स्वार्थ के हैं सब …
रिश्ते-नाते - कविता - विकाश बैनीवाल
गुड़-शक़्कर से होते है रिश्ते-नाते, मिठास बिन रहता सब फीका-फीका। परिवार की बुनियाद इन्हीं से जुड़ी, रिश्ते-नाते बताते ज़िंदगी का सलीक़ा…
कर्ज़ - कविता - अवनीत कौर
ज़िंदगी में हर इक रिश्ते का अपना कर्ज़ है ज़िंदगी में आए रिश्तों की अपनी ही इक गर्ज है इन रिश्तों के कर्ज़ ने भरी ज़िंदगी में मर्ज है। कर्ज…