संदेश
बँधुआ मज़दूर - कविता - संजय राजभर 'समित'
मर गया रामू जीवन भर क़र्ज़ा चुकाते-चुकाते पर चुका नहीं पाया। कभी आधा सेर मज़दूरी कभी डाँट पेट की आग में फिर उसका बेटा... बँधुआ फिर …
मज़दूर - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
रात दिन मेहनत करता जी भर पीता पानी, तंगी में भी ख़ुश रहता मज़दूर तेरी यही कहानी। औरों की सेवा करता सर्दी गर्मी या बरसे पानी, तन पे कपड़ा…
निराला जी की मज़दूरिन - कविता - रमाकान्त चौधरी
कितनी ही सड़कों पर बिछा उसका पसीना है, मगर क़िस्मत में उसकी आँसुओं के संग जीना है। किन-किन पथों पर उसने कितना पत्थर तोड़ा है, मेहनत से…
गिरती दीवारें - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
गिरती दीवारें और भी बहुत कुछ गिरा लाती हैं अपने साथ, सिर्फ़ मिट्टी और रेत के कण नहीं, जल के बूँद और लोहा भी नहीं, बल्कि उन मज़दूरों का …
मज़दूर - कविता - कुमुद शर्मा "काशवी"
मैं हारा नहीं... हालातों का मारा हूँ जो डरता नहीं मेहनत से कभी, वो मज़दूर प्यारा हूँ। चाहे तपती धूप हो, या हो राह पथरीली कर्मपथ है जीवन…
दुख ही सच्चा मित्र है - गीत - स्नेहलता "स्नेह"
पैर छलनी रोता अंतस हँसता छाया चित्र है, वेदना क़िस्मत श्रमिक की दुख ही सच्चा मित्र है। ख़ूब मेहनत से कमाते रोटियाँ दो जून की, भू बिछौना,…
परिस्थिति मज़दूर की - कविता - मिथलेश वर्मा
बोल के घर से निकला था, पैसे कमा के आऊँगा। कपड़ें, खिलौने लाऊँगा, बच्चों को शिक्षा दिलाऊँगा।। जब शहर मे कोरोना छाया, पुरे देश को बंद करव…