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मज़दूरों की कहानी - कविता - संदीप कुमार
एक मज़दूर की ज़िन्दगी, कुछ शब्दों में सुनानी है। ध्यान से पढ़ना, ये एक मज़दूर की सच्ची कहानी है।। किसी गाँव, किसी बस्ती में, एक छोटा सा मक…
मज़दूर की क़िस्मत - कविता - समय सिंह जौल
ऊँचे कँगूरे किलों में, मीनार और महलों में, अपना खून पसीना लगाता हूँ। संगमरमर से सुंदर दीवार सजाता हूँ।। शाम को चटनी से खा कर, गगन को छ…
मज़दूर - कविता - तेज देवांगन
हाँ मैं मज़दूर हूँ, बेबसी और लाचारी से मजबूर हूँ। हाँ मैं मज़दूर हूँ, छल प्रपंच मुझे नहीं आते, सीधा सुगम हम राह बनाते। करते नहीं कोई बुर…
मज़दूर है मजबूर - कविता - गणपत लाल उदय
मैं हूँ एक ग़रीब मज़दूर हालत ने कर दिया मजबूर। गाँव छोड़ शहर में आया पेट परिवार का भर नहीं पाया।। दिन भर में इतना ही कमाता शाम को ख…
मैं मजदूर हूँ - कविता - माहिरा गौहर
कभी निकले थे जो गाँव से शहर की ओर रोटी की तलाश में वो रोटी के टुकड़े पटरियों पर मिले राह तक ते उस खाने वाले की आस में क्या उन्हें कुचल…
मेरे देश का मजदूर - कविता - हरिराम मीणा
मजदूरों की ताकत जानो, उनकी शक्ति को पहचानो। तुम खाते हो बिरयानी, वह क्या जाने पकवान को।। मत भूलो उनके वादे, वह होते हैं सीधे-साधे। खुद…
बाल मजदूर - कविता - रवि शंकर साह
नन्हा - मुन्हा सा था मैं। नाजो से माँ ने ही पाला। माता पिता का राजदु लारा। नियति की ऐसी मार पड़ी। मैं हो गया अब अनाथ। कहते है अब सब हम…