संदेश
चंचल कलियाँ - कविता - संगीता राजपूत 'श्यामा'
ऋतु सावन की झोंके खाए कजरी मल्हार मे ठनी झूले झूल उठे डाली पे कली मकरंद संग सनी। नाच रहे हैं पत्ते देखो मेघ द्वार बरसे बूँदे घटा म…
ये फूल - कविता - मनोरंजन भारती
चाँद की चाँदनी को तुम, अपने आग़ोश में रखती हो, सुरज की पहली किरण संग, समेटे पंखुड़ियाँ खोलती हो। लेकीन एक कसक हमेशा रहेगा, जी भर बातें क…
फूल मुस्कुराते हैं - कविता - डॉ॰ कुमार विनोद
मुस्कुराने के लिए ज़रूरी नहीं पूरी तरह विज्ञापन में उतर जाना इन्सान के लिए तनाव रहित मस्तिष्क और पेट में अनाज का तिनका होठों की परिधि म…
रह जाती है सूनी डाली - कविता - राघवेंद्र सिंह
जिस दिन एक फूल जुदा होगा, उस डाली का फिर क्या होगा। था सींचा जिसने दिन रात उसे, उस माली का फिर क्या होगा। जिस दिन आई होगी आंँधी, वह डा…
फूलों सा तुम खिलते रहना - कविता - समुन्द्र सिंह पंवार
नेकी के रास्ते पर चलते रहना, प्यार से आगे बढ़ते रहना। सफलता रुक नहीं सकती, मेहनत तुम करते रहना। राहों में हैं काँटे बहुत सारे, फूलों स…
गुलाब - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
सुरूप, सुभाग है सौंदर्य उसका, उस पर मनोरम उसका रंग, खिल जाए वह, मुस्काए वह, छाए उस पर जब पीला रंग। नृत्य करे और इठलाए, जो मौसम करवट ले…
फूल मुरझाए हैं - गीत - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
फूल मुरझाए हैं, काँटों पे बहार आई है, क्या पता, कैसा ये बसन्त फ़िज़ा लाई है। क्या पता, काँटों की फूलों से क्या अररियाई है, फूल मुरझाए …