गुलाब - कविता - आराधना प्रियदर्शनी

सुरूप, सुभाग है सौंदर्य उसका,
उस पर मनोरम उसका रंग,
खिल जाए वह, मुस्काए वह,
छाए उस पर जब पीला रंग।

नृत्य करे और इठलाए,
जो मौसम करवट ले ज़रा भी,
खूब हँसे और शोर मचाए,
जब पाए वह वर्ण गुलाबी।

हर रंग में वह सौंदर्य छलकाए,
वह सब को अपने पास बुलाए,
खेले मिट्टी की गोद में,
हरा रंग जब उस पर छाए।

उसका रंग निखरता ही जाए,
जब जब बादल बरसाए पानी,
पंखुड़ी थिरक थिरक कर गाए,
प्रसिद्ध मैं फूलों की रानी।

सब से कहती है वह बलखा के,
ख़ुश रहती हूँ हर हाल में,
सबसे ज़्यादा सौंदर्य मेरा,
खिलता है रंग लाल में।

मेरी सुंदरता है अनोखी,
मैं सौरभ हूँ अनुराग हूँ,
मुझ जैसा है कौन यहाँ,
मैं अति रमणीय गुलाब हूँ।

आराधना प्रियदर्शनी - बेंगलुरु (कर्नाटक)

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