रह जाती है सूनी डाली - कविता - राघवेंद्र सिंह

जिस दिन एक फूल जुदा होगा,
उस डाली का फिर क्या होगा।
था सींचा जिसने दिन रात उसे,
उस माली का फिर क्या होगा।

जिस दिन आई होगी आंँधी,
वह डाली हर पल रोई होगी।
उस कोमल सी काया के लिए,
रातों को न वह सोई होगी।

अपने पातों से ढका होगा,
पातों ने भी दर्द सहा होगा।
पर फिर भी झूठी हंँसी लिए,
एक शब्द न फूल से कहा होगा।

वह माली भी सहमा होगा,
जब जब पानी बरसा होगा।
कुछ प्रेम के वश में ही वह भी,
नयनों से ही तरसा होगा।

कुछ रातें जागी ही होंगी,
कुछ सपन सजाए भी होंगे।
धरती से लेकर अंबर भी
उसकी ख़ातिर आए होंगे।

कुछ पाने को एक झलक,
कुछ घंटों लगे प्रतीक्षा में।
कुछ आह्लादित होकर ही,
लग गए फूल समीक्षा में।

कुछ ने तो कहा ये मेरा है,
कुछ प्रमुदित होकर रहे मौन।
जो थे सच्चे मालिक उसके,
आज बने हैं तुम हो कौन।

जब अपना कोई जाता है,
कष्टों को वह है दर्शाता।
एक बार गया तो चला गया,
न लौट के वापस वह आता।

रह जाती हैं उसकी यादें,
रह जाता है वह एक माली।
उस फूल के जुदा ही होते,
रह जाती है सूनी डाली।

डाली अंत में यह कहती,
इतना सा साथ निभा जाना।
जब फूल सा बनकर मैं आऊंँ,
तुम ख़ुशबू बनकर आ जाना।

राघवेंद्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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