संदेश
क्षितिज के पार जाना है - गीत - उमेश यादव
उठो जागो बढ़ो आगे, क्षितिज के पार जाना है। सुनो नारियों, आगे बढ़कर, अपना मार्ग बनाना है॥ जकड़ी थी ज़ंजीरों से पर, तूने क़दम बढ़ाई थी। झाँसी…
सुनो सबकी करो अपने मन की - लेख - कुमुद शर्मा 'काशवी'
इस उपरोक्त लोकोक्ति (मुहावरे) का अर्थ कितना सीधा एवं सरल है ना! कि हमें बातें तो सबकी सुन लेनी चाहिए पर हमारे मन को जो अच्छा लगे उसी क…
मैं हर महीने भीग जाती हूँ - कविता - सुधीरा
कुदरत के नियम को मैं अपनाती हूँ, हर बार दर्द में और ज़्यादा जीना सीख जाती हूँ, मैं हर महीने भीग जाती हूँ। लाल रंग का मेरी ज़िंदगी से गहर…
मैं नारी हूँ - कविता - गणेश भारद्वाज
दे दो सम अधिकार मुझे भी, पथ में आगे बढ़ने दो न। चढ़ जाऊँगी कठिन चढ़ाई, साथ मुझे भी चलने दो न। मैं नारी हूँ पूरक तेरी, समता को स्वीकार …
त्रिया - कविता - पायल मीना
क्यों मूक बन बैठी है क्यों सह रही है नृशंसता के धनी मानुषों का व्यभिचार क्यों सिला तुमने स्वयं के अधरों को क्यों पड़ी हो तुम क्लांत, …
नारी - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवदुर्गा नवशक्ति है, सुता वधू प्रिय अम्ब। लज्जा श्रद्धा पतिव्रता, नारी जग अवलम्ब॥ करुणा ममता हिय दया, क्षमा प्रेम आगार। प्रतिमा नित…
मैं नर के उर की नारी हूँ - कविता - ईशांत त्रिपाठी
मैं नर के उर की नारी हूँ, कुंठित व्यथित दुखारी हूँ, अधिकारों की हनन कथा को, वर्णित करके हारी हूँ, मैं नर के उर की नारी हूँ। संवेदन का …