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मौसम का स्वभाव - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
दिन भी अपनी रातें जैसे करता है रंगीन। आँधी ने है बहुत पेड़ों का ख़ून किया। हमने धीरे-धीरे खिलता प्रसून किया॥ भँवरों के हाँथों बाग़ों में…
बचके रहिए - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हादसों का शहर है ये बचके रहिए। कामना है आसमानी हो गई। और फूलों की जवानी हो गई॥ जीवन में है नदी की धार सा बहिए। इंसानियत सूख के काँटा ह…
तन्हाई ने घेरा है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
कितने रौशनदान खुले हैं, फिर भी तम का डेरा है। बिरवा सूखता है रिश्तों का। अटूट सिलसिला है किस्तों का॥ पल भर को भी नींद न आए, कैसा रैन …
चिराग़ लगे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
दूर करने अंधकार को जैसे चिराग़ लगे। सच का दामन और झूठ के सौ-सौ दाग़ लगे॥ शहर चतुर हैं गाँव अभागे हैं। फटी धोतियांँ सिलते तागे हैं॥ कोई प…
बादल मगन हो गए - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बरसता पानी ख़ूब, बादल मगन हो गए। हैं कर रहीं लहरें उत्पात। पावस की हुई बहुत बिसात॥ उजड़ जाए है ऊब, बादल मगन हो गए। धरा हो गई पानी-पानी।…
देह अगोचर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हरियाली की देह अगोचर पात लगे झरने। पड़ता लू का पेड़, पत्ते, फूल पर साया। आग हुई सूर्य किरण बहुत क़हर बरपाया।। नदिया, झरने, ताल लगे हैं…
प्यास वाले दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
लगे सताने झोपड़ियों को भूख औ प्यास वाले दिन। धूप है दिवस को कचोटने लगी। जब-तब लू हवा को टोंकने लगी।। जीवन में जबकि देखे हैं कड़वे अहसा…