प्यास वाले दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

लगे सताने झोपड़ियों को
भूख औ प्यास वाले दिन।

धूप है दिवस को
कचोटने लगी।
जब-तब लू हवा को
टोंकने लगी।।

जीवन में जबकि देखे हैं
कड़वे अहसास वाले दिन।

ताल हैं सूखे
औ सूखती नदी।
क्या यह है 
मौसम की नेकी-बदी।।

अनहोनियों में आ गए हैं
जैसे क़यास वाले दिन।

किरणें अगर लगनें लगीं
आँच सी।
देह में चुभ रहीं
टूटे काँच सी।।

जब माँगलिक अवसर आए
भिसके संत्रास वाले दिन।

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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