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उम्मीद पर करने लगी संवेदना हस्ताक्षर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
उम्मीद पर करने लगी संवेदना हस्ताक्षर। हैं ख़्वाब आँखों के पखेरू हो गए। विश्वास के पर्वत सुमेरू हो गए।। आशा अँगूठा छाप थी अब हो गई है सा…
जाड़े का मौसम - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
सबको बहुत लुभाता है जाड़े का मौसम। महल, झोपड़ी, गाँव शहर हो। या फिर दिन के आठ पहर हो।। कभी कभी तो लगता है भाड़े का मौसम। कंबल, स्वेटर …
खेले दिनमान - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
भोर हुई प्राची की गोद में खेले दिनमान! दिन उदय होते ही अँधेरा दूर हुआ! रात में नीड़ों में आराम भरपूर हुआ! दिन चढ़े सूरज ने कर दिया ध…
चाँद-तारे दे रहे बधाईयाँ - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
नव वर्ष में चाँद-तारे दे रहे बधाईयाँ। प्रात कपासी हुई तो दिन सुनहरे हों। घर-आँगन में ख़ुशी के ही ककहरे हों।। बात करें गुपचुप-गुपचुप ऊन …
शीशम-सागौन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
घर-घर पहचाने है शीशम-सागौन! महिमा है इनकी भी कुछ कम नही! इमारती लकड़ी है बेदम नही! भोर उठी कर रही नीम का दातौन! होता है पेड़ से स्वच्छ…
नदी की कहानी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
कौतुकी हुई है नदी की कहानी। उद्गम से शुरू फिर चौड़ा है पाट। मिलते हैं रस्ते में नदिया औ घाट।। चूमें है चश्म मौजों की रवानी। काटा है रास…
गुलमोहर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
गुलमोहर मानो स्वर्ग का फूल! लबालब भरा है पराग! खुले मधुमक्खी के भाग! मधुका का छत्ता रहा है झूल! धधके अंगार सा रंग! खिले हैं मधुऋतु क…