संदेश
आँधी आई है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बदहवास सा मौसम लगता आँधी आई है। बेमौसम है पानी बरसा। कुँआ-ताल है जल को तरसा॥ शाकिनी-डाकिनी जैसी लगती मँहगाई है। सदाचार का टोटा है अब। …
मानसून आया - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
झाड़ी-झुरमुट-पेड़ हैं मानसून आया। लगी चाँदनी चंदन जैसे। होता है अभिनंदन जैसे॥ झोला भर भर है देखा परचून आया। मिट्टी के हैं खेल खिलौने। …
इस जीवन के हर पृष्ठ पर - नवगीत - सुशील शर्मा
इस जीवन के हर पृष्ठ पर लिखे हुए उर के स्पंदन। तेरे अधरों की वँशी पर मेरे गान की लय होती हर पल हर क्षण तड़प वेदना भय बोती सकल आस के बंध…
बन ठन निकल चला मैं - नवगीत - पंकज देवांगन
बन ठन निकल चला मैं आरज़ू को ले चला मैं दोपहरी की धूप में थका हारा गिर पड़ा मैं बन ठन निकल चला मैं ख़ुशियाँ की दो घड़ी है फिर यह किसको क्या…
मन का नाप - नवगीत - सुशील शर्मा
तुमको अपना मन समझा था पर तुम भी तो निकले आस्तीन के साँप विषधर चारों ओर घूमते रहे फुसकते और भभकते कभी नहीं डर लगता था साथ तुम्हारा पाकर…
जाड़े के दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हैं जाड़े के दिन औ' ख़ूब प्यारी लग रही धूप। हैं तृप्त लगते तालाब, कुँए, झील। काला-काला कौआ लगता वकील॥ बेचती चूड़ी-बिंदी मनिहारी– लग…
माँ - नवगीत - सुशील शर्मा
तेज़ धूप में बरगद जैसी छाया माँ। झुर्री वाली प्यारी प्यारी काया माँ। मेरे मानस की लहरी में, सदा सुहागन मेरी माँ। मेरी जीवन शैली में, सु…
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