जाड़े का मौसम - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

सबको बहुत
लुभाता है
जाड़े का मौसम।

महल, झोपड़ी,
गाँव शहर हो।
या फिर दिन के
आठ पहर हो।।

कभी कभी
तो लगता है
भाड़े का मौसम।

कंबल, स्वेटर 
और रजाई।
ठिठुरन की तो
शामत आई।।

लुटी धूप ने
कहा दिन-
दहाड़े का मौसम।


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