सबको बहुत
लुभाता है
जाड़े का मौसम।
महल, झोपड़ी,
गाँव शहर हो।
या फिर दिन के
आठ पहर हो।।
कभी कभी
तो लगता है
भाड़े का मौसम।
कंबल, स्वेटर
और रजाई।
ठिठुरन की तो
शामत आई।।
लुटी धूप ने
कहा दिन-
दहाड़े का मौसम।
हिन्दी साहित्य की विशाल एवं लोकप्रिय ई पत्रिका। लोकप्रिय ई पत्रिका साहित्य रचना में पढ़ें हिन्दी कविता, हिन्दी बालकथा, मुक्तक, हिंदी गीत, लोकगीत, दोहे, ग़ज़ल, नज़्म, व्यंग्य, हिंदी कहानी, हिंदी लोककथा, हिंदी लघुकथा, हिंदी सत्यकथा, लेख, आलेख, निबन्ध, संस्मरण, छंद मुक्त रचनाएँ, इत्यादि। हिन्दी वेब पत्रिका, हिंदी ऑनलाइन पत्रिका, ई पत्रिका, Best Emagazine, हिन्दी रचना
रचनाएँ या रचनाकारों को खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन को दबाए
रचनाएँ या रचनाकारों को खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन को दबाए
विज्ञापन
|