संदेश
तन्हाई ने घेरा है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
कितने रौशनदान खुले हैं, फिर भी तम का डेरा है। बिरवा सूखता है रिश्तों का। अटूट सिलसिला है किस्तों का॥ पल भर को भी नींद न आए, कैसा रैन …
मैंने जीना सीख लिया है - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
घर में रहा अकेले तो भी, मैंने जीना सीख लिया है। जी घबडा़या गीता पढ़ ली, सीखी मैंने जीवन धारा। फिर चाहा तो गीत बनाया, रहा गुनगुना यही स…
एकांतवास - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली सोढ़ी'
दुनिया की इस भीड़ में इतनी मग्न कि ख़ुद को समझना भूल गई ख़ुद क्यों हूँ? क्या हूँ? हूँ भी या नहीं? ख़ुद को निरखना भूल गई। एक दिन यूँ ही सम…
अब तन्हाइयों में बैठना छोड़ दिया है - कविता - शाहरुख खान
हज़ारों से बचाकर अपने आशियाने को, अपने हाथों से ख़ुद ही तोड़ दिया है! मेरे क़दम जो जाते थे तेरी गलियों में, उन्हें मयख़ाने की तरफ़ मोड़ …
तन्हाई - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मादक पुरबैया बहती हैं, बाल सर्प सम लहराते हैं। सुन्दर नैन विशाल नशीले, नवयौवन दिल मदमाते हैं। यौवन तरंग बनी सरिता है, मादक नैन नेहाश्र…
मैं और मेरी तन्हाई - कविता - आनन्द कुमार "आनन्दम्"
मैं और मेरी तन्हाई! अक्सर बातें करती है। वह मुझसे सवाल करती और मैं सवालों की गठरी लिए जवाबो की शहर पहुँचता पर जवाब ढूँढ न पाता, ये सिल…
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