मादक पुरबैया बहती हैं,
बाल सर्प सम लहराते हैं।
सुन्दर नैन विशाल नशीले,
नवयौवन दिल मदमाते हैं।
यौवन तरंग बनी सरिता है,
मादक नैन नेहाश्रु भरे हैं।
तन्हाई के दर्दिल ओले,
घायल दिल बैचेन पड़े हैं।
गंगा सम निर्मल भाती है,
कोमल गाल रसाल बने हैं।
बिम्बाधर मुस्कान अधर पे,
वक्षस्थल मधुशाल बने हैं।
मुक्तावली सम दन्त पँक्ति हैं,
षोडश तन शृंगार सजे हैं।
ग़ज़ब भंगिमा नैन नशीले,
गज नितम्ब अतिभार बने हैं।
तन्हाई सजनी जीती है,
विरहानल में सजन जले हैं।
बड़ी बावली भींगी आँखें,
प्रीति मिलन अभिलाष बढ़े हैं।
बाट जोहती सावन बीता,
अब बसन्त भी बीत रहे हैं।
चित्त चकोरी सजन आश में,
घन चकोर बन बरस पड़े हैं।
सजनी तुम दिल में बसती है,
तन मन धन तुझपर अर्पण हैं।
राधा मन गोरी तुझे समझ,
श्याम विरह खोया चितवन है।
रति विरहिणी तड़प रही है,
फागुन होली रंग चढ़े हैं।
कुटिल हृदय तुम साजन मोहे,
प्रेम सरित तट बाँध टुटे हैं।
प्रीत मिलन होगी सोची थी,
प्रिया हृदय दिलबाग खिले हैं।
विरह वेदना भूलेंगे हम,
प्रीत चमन गुलज़ार बने हैं।
भूलो बीती मैं मनहारी,
बस चाहत प्रिय लौट रहे हैं।
तरसी बिन पानी बनी मीन,
दिल साजन क्यों वैर बने हैं।
बार बार क्यों प्रेम परीक्षा,
जली आग में सिद्ध किए हैं।
एकबार विश्वास करो प्रिय,
मिलूँ अगर दिलदार बने हैं।
मैं समा प्रीत गलहार बनी,
चाह, सजन से माँग सजी हैं।
मानो दिलकश प्रिय चाहत मन,
प्रिया बलम गलहार पड़ी हैं।
दिन-रात सनम मन में जीती,
तन्हाई के साए तले हैं।
मरकर दूँगी सौगात प्रीत,
नहीं अगर साजन आते हैं।
विरह प्रीत लखि पीडा सजनी,
कवि निकुंज नैनाश्रु भरे हैं।
सुनो सजन तज तन्हाई पल,
प्रिया देख, मकरन्द खिले हैं।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली