लइका एम०ए० पास ह - हास्य भोजपुरी कविता - प्रवीन "पथिक"

पाँच लाख त नग़द चाहीं,
अवरू एगो गाड़ी।
फ्रिज कूलर रंगीन टी०वी०,
दूध ख़ातिर चाही पाड़ी।
एहि पाड़ा के जम के पोसनी,
एकरे पर मोर आस ह।
ठीक-ठाक से देख ल भईया,
हमार लइका एम०ए० पास ह।
चारिगो मास्टर गाड़ी कइले,
तब हाईस्कूल पास भइल।
पाँच जाना मिली काॅपी लिखले,
तब इण्टर के आस भइल।
बी०ए० में बस सात हज़ार,
एम०ए० में चौदह गिननी।
अइसे आपन इ बबुआ के,
मये डिगरी किननी।
ह घर के अकेला लइका,
गाँव के इहे नाज़ ह।
ठोकी-ठठाई के देख ल भईया,
इ लइका एम०ए० पास ह।
चाल चलन बा एक लमर के,
सभे कहेला हीरा ह।
तीन बेर गंउवे में पिटाइल,
भोला-भाला खीरा ह।
लइकीन से त अस भागेला,
जस चुमुक से लोहा।
गाँव मोहल्ला लाठी-डंडा,
लेके दू बेर जोहा।
तनिको लेकिन मिली न एमे,
पक्का इ देवदास ह।
अच्छा से तू जाँच-परख ल,
हमार लइका एम०ए० पास ह।
दूध दही त छूअबो न करे,
पिए बारान्डी-भिसकी।
जब देखेला लइकी के त,
मारे चवनिया मुस्की।
बा पसंद हमरो लइका त,
पाँच लाख ले आव।
पहिले गिनी द दाम, फेरू
तू एकर तिलक चढ़ाव।
पहिले करी बियाह बाद में,
होई सत्यानाश ह।
ठीक-ठाक से देख ल भईया,
हमार लइका एम०ए० पास ह।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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