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व्यर्थ बहता जीवन - मनहरण कवित्त छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
पदार्थ प्यारा प्राणों से समझो सुहृद सब, मृग-मरीचिका मरुस्थल माय कहा है। इतराता इंसान परवाह प्राण की नहीं, रंगहीन रूहानी जन जीवन कहा है…
श्रीराम वनगमन - मनहरण घनाक्षरी छंद - सत्यम् दुबे 'शार्दूल'
राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम, अपलक सोच रहे आता कौन धीर है; आता कौन धीर वीर श्याम वर्ण है शरीर; हाथ में धनुष लिए पीछे को तुणीर है, …
हिंसा: एक जघन्य अपराध - मदिरा सवैया छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
आदिम मानव जंगल में रहता, कम थी मति मानुष में। चर्म चबाकर भूख मिटाकर, नग्न व धावत था वन में। बेबस था मजबूर परन्तु, अभी प्रज्ञ पण्डित है…
हर हर महादेव शम्भु - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
धर्म सनातन पर्व शुभ, सावन पावस मास। त्रयोदशी पूजन सविधि, उभय पक्ष उपवास॥ प्रदोष व्रत शिव वन्दना, फागुन सावन मास। कृपासिंधु शिव साधना, …
सावन की बरसात - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
ग्रीष्मातप सूखी धरा, छाया नभ घनश्याम। सावन की बरसात अब, बरस रही अविराम॥ रिमझिम मधुरिम बारिशें, भरे खेत खलिहान। प्रीत हृदय सावन मिलन, ख़…
तन्हाई - देव घनाक्षरी छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
उमड़कर उदासी उन्मुनी उलझन-सी, उदास उधर उसे इधर इसको करत। वह वहाँ तड़पती तुम तमा तरसते, उदासी उनकी दिल दहलाती मन मरत। बनी बेडी़ बेरहम प्र…
आत्मबोध - गीत (लावणी छंद) - संजय राजभर 'समित'
कोई कठिन जादू नहीं तू, न ही सरल छू मंतर है। इधर-उधर न खोज रे! ख़ुद को, तू अपने ही अंदर है। तू ही चैतन्य, तू ही सत्य, तू शाश्वत ज्योति प…
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