श्रीराम वनगमन - मनहरण घनाक्षरी छंद - सत्यम् दुबे 'शार्दूल'

श्रीराम वनगमन - मनहरण घनाक्षरी छंद - सत्यम् दुबे 'शार्दूल' | Manharan Ghanakshari Chhand - ShriRam Vangaman - Satyam Dubey 'Shardool'
राम जी को देख कर भूल बैठे सब काम,
अपलक सोच रहे आता कौन धीर है;
आता कौन धीर वीर श्याम वर्ण है शरीर;
हाथ में धनुष लिए पीछे को तुणीर है,
तुणीर में चार बाण चारों करें झनकार;
अधर की वाणी सम बोलते कि वीर हैं,
वीर एक पीछे पीछे शांत चित्त मौन धारे,
शांत चित्त कह रहा देव सशरीर हैं।

देव सशरीर किंतु मस्तक पर मुकुट नहीं,
रथ की तो बात और पादुका विहीन हैं;
पादुका विहीन मन कैसे कहे देव मुनि,
देव मुनि नहीं किंतु लगते नवीन हैं;
लगते नवीन तन पावन पुनीत मन,
जोगी जैसा वेश नहीं किसी के अधीन हैं;
किसी राजपुंज के प्रकाशमान बिंब तीन,
धर्म ध्वजा वस्त्र धारे लगते प्रवीण हैं।

लगते प्रवीण भाई पूछो तनी नाम गाँव,
आज रुक जाएँ यहीं जाना यदि दूर है;
दूर दूर जंगलों में भटकेंगे कहाँ यहाँ,
जंगलों में जीव-जंतु बसे भरपूर हैं;
बसे भरपूर खाएँ सोएँ रहें प्रात जाएँ,
नगर यहाँ से अभी बहुत सुदूर है;
बहुत दिनों के बाद आया कोई आज यहाँ,
राम की कृपा से उसे रोकना ज़रूर है।

सत्यम् दुबे 'शार्दूल' - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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