व्यर्थ बहता जीवन - मनहरण कवित्त छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'

व्यर्थ बहता जीवन - मनहरण कवित्त छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत' | Manharan Kavitt Chhand - Vyarth Bahta Jeevan - Pawan Kumar Meena
पदार्थ प्यारा प्राणों से समझो सुहृद सब,
मृग-मरीचिका मरुस्थल माय कहा है।
इतराता इंसान परवाह प्राण की नहीं,
रंगहीन रूहानी जन जीवन कहा है।
प्रकृति पुकारती पढ़ाती पाठ पहचानो,
बिना जीवन जीवन जहन्नुम कहा है।
व्यर्थ बहे बूँद-बूँद पानी पानी न “मारुत”,
मानव काया का कतरा-कतरा बहा है॥


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos