संदेश
ईर्ष्या-निन्दा त्याग दो - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
ईर्ष्या-निन्दा त्याग दो, कबहुं न राखो पास। निन्दा से प्रभुता घटै, ईष्या उपजै रास॥ ईर्ष्या उपजै रास, अरे! निन्दा से दूरी। दोनों मन के द…
भाई बिन सूनो जगत् - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
भाई बिन सूनो जगत्, जस पादप बिन पात। हृदय सिन्धु में धड़कता, वही सहोदर भ्रात॥ वही सहोदर भ्रात, बने जीवन की धारा। जब संकट की मार, समर्पि…
बेटियाँ मन की सच्ची - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
गीता के संरक्षकों, बन बनिए जयचंद। कर बेटी के चमन में, दख़लंदाज़ी बंद॥ दख़लंदाज़ी बंद, बेटियाँ मन की सच्ची। शुरुआती है दौर, अभी भी लगती बच्…
नवरात्रि - कुण्डलिया छंद - सुशील कुमार
माता दुर्गा का लगे, तीजा रूप महान। अर्धचंद्र है भाल पर, चंद्रघंटा सुजान॥ चंद्रघंटा सुजान, भुजा दस सोहे माँ के। मिट जाते सब पाप, करे दर…
राधा नाचें श्याम मन - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
राधा नाचें श्याम मन, श्याम सार संसार। मुरली मुरली में समा, नाचें पालनहार॥ नाचें पालन हार, सभी मन मोह लुभावे। मुरली की है तान, सार संसा…
नयन-नयन में हो रही - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
नयन-नयन में हो रही, नयन-नयन की बात। प्रेम प्यार का अंतरा, गीत-ग़ज़ल शुरुआत॥ गीत ग़ज़ल शुरुआत, शब्द रचना है सुरीली। ऐसे समझो यार, जैस है…
दिशा दो नाथ - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
जैसा कहते आप हैं, करन चहौं दिन-रात। बिन आज्ञा नहिं डोलत, थर-थर पीपर पात॥ थर-थर पीपर पात, धरा को पग में बांधे। सारा जग का बोझ, धरे हो अ…