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बढ़ते रहो पथिक सदा - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
बढ़ते रहो पथिक सदा, धरि धीरज की डोर। स्नेह प्रेम ममता लिए, सबहिं रखो हृद कोर॥ सबहिं रखो हृद कोर, शान्ति संयम को धारो। सीखो सहना पीर, अ…
भाई - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
भाई बिन सूनो जगत् जस पादप बिन पात। हृदय सिन्धु में धड़कता वहीं सहोदर भ्रात॥ वही सहोदर भ्रात बने जीवन की धारा। जब संकट की मार समर्पि…
हिंदी भाषा - कुण्डलिया छंद - सुशील शर्मा
1 लहराती द्युति दामनी, घोल मधुरमय बोल। हिंदी अविचल पावनी, भाषा है अनमोल॥ भाषा है अनमोल, कोटि जन पूजित हिंदी। फगुवा रंग बहार, गगन मे…
रक्षा बंधन - कुण्डलिया छंद - सुशील शर्मा
1 चन्दन जैसा महकता, भ्रात बहिन का प्यार। कच्चे धागे से बँधा, रिश्ता ये सुकुमार॥ रिश्ता ये सुकुमार, बहिन है दिल का टुकड़ा। उर में हो …
सावन में शिव अर्चना - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
सावन में शिव अर्चना सोम दिवस अति नेम। अवढर दानी चाहते शुद्ध सरल शुचि प्रेम॥ शुद्ध सरल शुचि प्रेम दूध घी चन्दन वारो। जप लो नमः शिवाय…
क़हर ढा रहा आसमाँ - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
क़हर ढा रहा आसमाँ, बरस रही है आग। सर पे गमछा बाँध ले, जाग मुसाफ़िर जाग॥ जाग मुसाफ़िर जाग, बदन गर्मी से उबले। राति मसन की फ़ौज, सुनावै क…
पति-पत्नी का प्यार - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
दिन कटता कशमकश में, रात रार ही रार। किन गलियों में खो गया, पति-पत्नी का प्यार॥ पति-पत्नी का प्यार, दिख रहा अंजानों सा। पीठ खाट पर जोड़,…