क़हर ढा रहा आसमाँ - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

क़हर ढा रहा आसमाँ, बरस रही है आग। 
सर पे गमछा बाँध ले, जाग मुसाफ़िर जाग॥ 

जाग मुसाफ़िर जाग, बदन गर्मी से उबले। 
राति मसन की फ़ौज, सुनावै कानन जुमले॥ 

कहें बेधड़क बंधु, पसिनवा देह आ रहा। 
गरमी का माहौल, शहर में क़हर ढा रहा॥ 

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos