भाई - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

भाई - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' | Kundaliya Chhand - Bhaai | भाई पर कुण्डलिया छंद
भाई बिन सूनो जगत् जस पादप बिन पात। 
हृदय सिन्धु में धड़कता वहीं सहोदर भ्रात॥ 

वही सहोदर भ्रात बने जीवन की धारा। 
जब संकट की मार समर्पित कभी न हारा॥ 

'अंशु' पोष जस फूल वही लाए अरुणाई। 
शत्रु देखि भगि जाय संग जब होता भाई॥ 

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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