दिन कटता कशमकश में, रात रार ही रार।
किन गलियों में खो गया, पति-पत्नी का प्यार॥
पति-पत्नी का प्यार, दिख रहा अंजानों सा।
पीठ खाट पर जोड़, सो रहा बेगानों सा॥
कहें बेधड़क बंधु, दिलों में प्रेम घोलिए।
प्रेम तुला पर मित्र, स्वयं संबंध तौलिए॥
भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)