संदेश
पिता: एक अनकहा संवाद - कविता - सुशील शर्मा
पिता कोई शब्द नहीं है, न ही कोई सम्बन्ध भर। वह तो एक अनदेखा प्रतिबिम्ब है जिसे हम तभी पहचानते हैं जब वह ओझल हो जाता है। वह जन्म नहीं …
अंतिम यात्रा - कविता - राजेश राजभर
आत्मा अविजित अमर है– सर्वविदित है नश्वर काया! अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये, मैं कहाँ इसे झूठलाया! बंधन मुक्त नहीं थे मुझसे…
जाल - कविता - मदन लाल राज
मकड़ी सिद्धहस्त है, ख़ुद जाल बनाने में। फिर तरकीब लगाती है, शिकार को फँसाने में। अपने रसायन से वो बेतोड़ जाल बुनती है। पकड़ने को कीड़े…
तू ज़िंदा है! - कविता - संजय राजभर 'समित'
उठ चल! और लड़ गर साँस लेता हुआ तू ज़िंदा है तो याद रख तुझे आगे बढ़ना ही पड़ेगा, गर थक गया है तो माँझी को देख गर अंधा है तो लुइ ब्रेल को…
ख़ुद को ढूँढ़ने की राह - कविता - रूशदा नाज़
हर शख़्स को यादों में रोते देखा है व्यथित होकर ख़ुद को सम्भालतें देखा है ख़ुद से प्यार करने की सलाह सब देते है प्रेम में बिखरने के बाद ये…
सिन्दूर के बदले - कविता - पवन कुमार मीना 'मारुत'
युद्ध यादें दे जाता है कड़वी-कड़वी यादें। ले जाता है साया दुधमुँहें बच्चों के सिर से बाप का। और दे जाता है सिन्दूर के बदले हँसती-मुस्कुर…
कहने को अपने - कविता - सुशील शर्मा
भीड़ में भी क्यों, दिखती है दूरी। अपनों को अपना कहना है भारी। शब्दों के धागे, रिश्तों की माला, पर मन के भीतर, दिखता है हाला। मुश्किल घड़…
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