संदेश
बदल गया इंसान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
कितना अजीब लगता है जब हम कहते हैं कि इंसान बदल गया, परंतु हमने कभी अपने बारे में सोचा है क्या? आख़िर हम भी तो इंसान हैं, औरों पर ऊँगलि…
कठपुतली का रंगमंच - लेख - प्रेम प्रकाश बोहरा
हमेशा से ही हम देखते हैं कि बालक के जन्म पर वह ख़ुद रोता है और जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो दूसरे लोग रोते है, ऐसे ही इंसान के जन्म-…
हर इंसान बराबर है - कविता - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
चीनी हो जापानी हो, रूसी हो ईरानी हो। बाशिंदा हो लंका का, या वो हिंदुस्तानी हो। सब का मान बराबर है, हर इंसान बराबर है।। अनवर हो अरबिंदो…
इंसान तो खो गया - कविता - श्रवण निर्वाण
तन बंटे हैं मन बंटे हैं बंटाधार हो गया, इंसान तो खो गया। रंग बंटे हैं लिबास बंटे हैं मनमुटाव हो गया, इंसान तो खो गया। मौहले बंटे हैं ब…
वाह रे इंसान - कविता - गणपत लाल उदय
वाह रे इंसान अब तो हद ही हो गई । अपनी औरत के आगे माँ रद्द हो गई।। सीचा था जिसने छाती का दूध पिलाकर। आज पानी के लिए भी मोहताज हो गई।…
मुसाफ़िर - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
मुसाफिर की तरह है इंसान यहाँ, सबके हैं अपने-अपने काम यहाँ। सब मशरूफ अपनी ज़रूरत में, कोई मुहब्बत में कोई नफरत में, जीना-मरना भी भूल रह…
मैं - कविता - नीरज सिंह कर्दम
काश ! कोई पूछे मुझसे कि मैं क्या हूँ ? मैं कौन हूँ ? मैं सर उठाकर बताने में असमर्थ हूँ । क्योंकि मैं इंसान नही रह गया हूँ । मैं हिंसा,…