कठपुतली का रंगमंच - लेख - प्रेम प्रकाश बोहरा

हमेशा से ही हम देखते हैं कि बालक के जन्म पर वह ख़ुद रोता है और जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो दूसरे लोग रोते है, ऐसे ही इंसान के जन्म-मृत्यु की श्रंखला चलती रहती है।
जैसे हम हमारे मनोरंजन के लिए गेम, शतरंज, गुढे-गुड़ियों के खेल खेलते है। इंसान ने अपने मनोरंजन के लिए खिलौनों का निर्माण किया है इसी प्रकार ही भगवान ने इंसान कि उत्पति किया, इंसान को बनाया।
इन्हीं इंसानों को भगवान कठपुतली जैसे किरदार में पेश करता है और अभिनय करवा कर इंसान को ज़िंदगी के अनगिनत रहस्यों से गुज़ार कर जन्म मृत्यु के रहस्य से अवगत करवाते है।
इस खेल में इंसान भगवान के रंगमंच की कठपुतली होता है।

परमेश्वर की लीला अपरम्पार है जो भी करता है बड़ी ही सुनियोजित योजना के तहत करता है, पृथ्वी के संतुलन की पूर्ण सफल योजना के अनुरूप ही कार्य करता है।
व्यक्ति का जन्म लेना, शादी होना, मरना, सांसारिक कार्यों आदि से ईश्वर अपनी रचना को कठपुतली के रंगमंच जैसा अनुभव करके प्रस्तुत करते है। कठपुतली स्वयं नहीं चलती, उसे चलाने के लिए कुशल कारीगर की जरूरत होती है और ईश्वर के अलावा कोई ओर कुशल कारीगर नहीं हो सकता है।

भगवान् के खिलौने = इंसान
भगवान के बनाए इंसान =कठपुतली

तकदीर में क्या लिखा, कितना लिखा है, कितनी साँसें बाकी है, यह सब परमेश्वर के हाथ में है। व्यक्ति की उम्र कभी बढ़ती नहीं, वह तो घट रही है।
और इसी बात का ध्यान रखते हुए अपने और सृष्टि के कल्याण के भाव को आगे बढ़ाना चाहिए।
हम अगर कठपुतली है तो हमारे तार उस ईश्वर के हाथ में है जो हमें इधर उधर चला रहा है, इधर उधर मोड़ रहा है। क़दम हमारे है लेकिन रास्ते और इशारे ईश्वर के हैं, 
इसीलिए कठपुतली ही सही, कर्म करते रहें, कल्याणकारी सोचें।

प्रेम प्रकाश बोहरा - किशनगढ़, अजमेर (राजस्थान)

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