संदेश
क्या दो ही थे हैवान? - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
यह कविता समाज के उन लोगों को समर्पित है जो समाज में सामने होते अत्याचार पर मात्र तमाशा देखते रहते हैं मदद की कोई कोशिश नहीं करते। बल्ल…
मुझे मत कहना - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मेरा बालक मुझसे कहने लगा पापा मुझे राम मत कहना क्योंकि मैं किसी धोबी के कहने से अपनी पत्नी को नही त्यागूँगा। पापा मुझे शिवशंकर भी मत …
समय नही है - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
इंसान का सोच इतना ओछा हो गया है और वेझिझक हो भयभीत परिस्तिथि में कनी काट कर आगे बढ़ जाता है और सहज तरीके से कहने लगता है यार समय नही है…
इंसान का सौदा - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
हो रहा है आजकल इंसान का सौदा हक - हक़ूक़ और ईमान का सौदा जंग इंसाफ़ की हम रह गए लड़ते कर लिया उसने हुक्मरान का सौदा खूब सियासत चमका रहा था…
इंसान - प्रार्थना - शेखर कुमार रंजन
ऐसा बनू मैं एक इंसान, दुनिया जाने मेरा नाम पढ़लिख कर महान बनू मैं, भारत माँ की शान रहूँ। ऐसा बना दो हे भगवान, मैं भी तो हूँ आखि…
सेवा इंसान को बनाती महान - कविता - सुषमा दिक्षित शुक्ला
जग में सेवा करने वाले, ही महान बन पाए हैं । मानो सेवा की खातिर ही , वह धरती पर आये हैं । मानव सेवा से बढकर , तो कोई कर्म नही…