मुसाफ़िर - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"

मुसाफिर की तरह है इंसान यहाँ,
सबके हैं अपने-अपने काम यहाँ।

सब मशरूफ अपनी ज़रूरत में,
कोई मुहब्बत में कोई नफरत में,
जीना-मरना भी भूल रहे  इंसान,
सब‌ चला रहे  हैं स्वार्थ की दुकान,

सब बनाने में लगे  पहचान यहाँ,
मुसाफिर की तरह है इंसान यहाँ।

छोटी सी जिन्दगी खत्म हो जाएगी,
अच्छे-बुरे सारे कर्म हमें सताएगी,
आखिरी ठिकाने की तैयारी कर लें,
सफर में ईमान की खरीदारी कर लें,

है बेकार चंद लम्हों की शान यहाँ,
मुसाफिर की तरह है इंसान यहाँ।

नूरफातिमा खातून "नूरी" - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

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