संदेश
जाल - कविता - मदन लाल राज
मकड़ी सिद्धहस्त है, ख़ुद जाल बनाने में। फिर तरकीब लगाती है, शिकार को फँसाने में। अपने रसायन से वो बेतोड़ जाल बुनती है। पकड़ने को कीड़े…
आईना झूठ नहीं बोलता - कविता - रत्नेश शर्मा
सभी कहते हैं आईना झूठ नहीं बोलता इन्सान हो या पर्वत-पहाड़ बेदाग़ चेहरा हो या दाग़दार हू-ब-हू दर्शा देता है। इसीलिए, नए दौर के लोग आईना न…
यंत्र - कविता - मदन लाल राज
सुबह का होना चिंताओं का समीकरण। फिर शुरू होती है, घटा-गुणा, भाग-दौड़। लगातार गतिशीलता बढ़ाती है दिल की धड़कन। मशीनों की खटखट और धुआँ स…
इंसान - कविता - निर्मला सिन्हा
सिर पर टोपी, माथे पर तिलक सबब पूछती है क्या? ऐ सियासत जरा ये बता ये हवा मज़हब पूछती है क्या? हैं यहाँ सब भगवान के ही बच्चे, दौड़ता सब…
आदमी - कुण्डलिया छंद - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"
बतलाते हैं, आदमी, है संवेदन हीन। पागुर करता मौज में, ख़ूब बजाओ बीन।। ख़ूब बजाओ बीन, नहीं वह कुछ भी सुनता। केवल अपने स्वार्थ, सिद्धि के स…
मानवीय संवेदना - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
मैंने समझा, महसूस किया और पाया कि मानवीय संवेदना से अधिक मधुर और महत्वपूर्ण; इस दुनिया में कुछ भी नहीं। नहीं रखता महत्व कुछ और जितना क…
इंसान की भूख - कविता - प्रद्युम्न अरोठिया
इंसान को इंसान की भूख ने मारा, हड्डियों के ढाँचों का शहर कर डाला। हर तरफ़ एक ही चीख़ निकलती है, मौत ने नींद जो गहरी दे दी है। कोई नहीं स…
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