रेत में दुख की - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

रेत में दुख की - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा | Hindi Kavita - Ret Mein Dukh Ki - Hemant Kumar Sharma
आओ फिर से उठे,
बेहतर में मिल जाएँ।
रेत में दुख की,
कुसुम सम खिल जाएँ।

गहरे हैं सन्नाटे,
गहरी है विषाद की रेखा।
दूजों की बात करें क्यों,
अपनो को भी ख़ूब देखा।
उधड़ें है फिर सिल जाएँ।

बारिश के मौसम में सूखा,
वह शख़्स कल से भूखा।
वादे थे कच्चे,
सड़क की तरह।
फिर विश्वास किया,
मन ढीट की तरह। 
जैसे ज़ख़्म छिल जाएँ।

पीड़ा के क्षणों में,
सुख के कणों में।
सूरत बस तेरी थी,
हवा भी घनेरी थी,
कहने की देरी थी।
दरख़्त भी हिल जाएँ।


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