इक ख़ुमारी है बे-क़रारी है - ग़ज़ल - रोहित सैनी
बुधवार, जनवरी 24, 2024
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122 1212 22
इक ख़ुमारी है, बे-क़रारी है,
रूह प्यासी है, मन भी भारी है।
इक सदी है कि जो गुज़र गई है,
एक लम्हा है जो कि तारी है।
आग है दिल में, दिल धधक रहा है,
या'नी यूँ है कि बर्फ़-बारी है।
दिल नहीं है, जो दिल है सीने में,
पहलू में है छुरी, कटारी है।
सूरत-ए-हाल बस यही है अब,
नागवारी है, दिल-फ़िगारी है।
अब किसी से नहीं कोई उम्मीद,
ना किसी से गिला-गुज़ारी है।
पूछते हो कि है मुहब्बत क्या,
मैं मुहब्बत, ये ख़ाकसारी है।
प्यार है आज भी हमें, या'नी,
आज भी हमपे ज़ुल्म जारी है।
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