दुर्योधन क्या बाँध पाएगा? - कविता - मयंक द्विवेदी

न बाँध सका जिसे कारागृह,
न बाँध सके जिसे नंद अयन, 
न बाँध सके यशोदा सूत बंधन,
न साध सके जिसे कंस भुजबल,
दुर्योधन क्या कर पाएगा?
प्रत्यक्ष विधाता को दे चुनौती,
दुर्योधन क्या बाँध पाएगा?
ना रोक सके जिसे यमुना के तीर,
ना रोक सके उद्धव अधीर,
जिससे है ब्रह्माण्ड सकल,
ग्रह नक्षत्र चलते अविरल,
जो स्वयं सृजनकर्ता संहारक,
प्रत्यक्ष विधाता को दे चुनौती,
दुर्योधन क्या बाँध पाएगा?
ना धर सके पग बलि, वामन,
जिसको ना जीत सका दशानन,
दुर्योधन जैसे ही आगे बढ़ा,
मति विचलित अहंकार अड़ा।
दरबार हुआ सारा हतप्रभ,
द्रोण भीष्म हुए विस्मित,
प्रभु ने सुदर्शन चक्र धार लिया,
प्रचण्ड प्रकाश की अग्नि में,
रौद्र रूप विस्तार किया।
कौरव हुए सब दृष्टिहीन,
प्रत्यक्ष विधाता को दे चुनौती,
दुर्योधन क्या बाँध पाएगा?
ऐसे ना वश में होंगे मुरलीधर,
एक काम करो दुर्योधन,
प्रेम पाश से बँधे बंशीधर,
केवल प्रेम पाश ही है ज़ंजीर।
कृष्ण बोले–
माँगों दुर्योधन चाहे जो माँग लो,
या तो मेरी चर्तुदिक सेना,
या मुझ को ही तुम माँग लो।
दुर्योधन को मतिभ्रम हुआ,
साक्षात प्रभु को न पहचान सका,
धर्म अधर्म के युद्ध में,
मानो अधर्म ही माँग लिया।
त्याग प्रभु के चरणो को,
स्वयं हाथों अपना संहार किया,
त्याग प्रभु के चरणो को,
अपने कुल का संहार किया।


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