रावण ज़िंदा है - कविता - गोकुल कोठारी

सत्य आग्रही राम ने मारा,
पर दुराग्रही रावण नहीं हारा।
सदियों से हम फूँक रहे हैं,
सारी ताक़त झोंक रहे हैं।
लेकिन वह मायावी सठ,
उसकी अपनी हठ।
माया उसकी जगज़ाहिर,
वह रूप बदलने में माहिर।
मनुज ह्रदय में कर घुसपैठ,
बना ली है गहरी पैठ।
है सुभट अतिविद्वान,
कहता है ख़ुद को भगवान।
कभी संत कभी बाहुबली,
विविध रूप में दुष्ट खली।
आन आबरू करता मर्दन,
पकड़ में उसके सबकी गर्दन।
आस पास अपने देखो उसकी कितनी गहरी पकड़,
और गौर से देखो मन के भीतर भी तो जकड़।
करता दुष्ट गहरा वार,
अटे पड़े हैं अख़बार।
कर मर्यादा का अपमान,
बघार रहा है गहरा ज्ञान।
राम से पचा न पाया अपनी हार,
इधर-उधर डोलता कर मर्यादा तार-तार।
पहचान, बाहर भीतर झाँक के देख,
खींच सत्य की लक्ष्मण रेख।
सावधान, ख़बरदार,
रावण ज़िंदा है यार।

गोकुल कोठारी - पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)

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