मैया माखन की मटकी दे दो - कविता - नंदनी खरे

मैया माखन की मटकी दे दो,
नटवर नभ नृप नंदलाल सजे।
सोम सागर सरिस से नैना,
नैन निहारत चंद्र लजे।

ना लागे नज़रिया कान्हा को दैया,
सब ले ले काजल की डिबिया चले।
गोकुल की गलियों की ग्वालिन,
ओ कान्हा! ओ कान्हा! नाम भजे।

पंकज पंखुड़ी से पावों में पैजन,
छुन छुन धुन कर कृष्ण भगे।
छलिए की छवि छाई हृदय में,
हृदय हमारा हरीलोक लगे।

कान्हा की काया कैसी है माया,
उसको तो माखन की भूख लगे।
गोकुल की गलियों की ग्वालिन,
कान्हा! कान्हा! गुण गान भजे।

मैया माखन की मटकी दे दो,
नटवर नभ नृप नंदलाल सजे।

नंदनी खरे - जुन्नारदेव, जमकुंडा (मध्य प्रदेश)

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