प्रेम की पराकाष्ठा - कविता - शिवचरण सदाबहार

(राधा कृष्ण से)

सारा जीवन राधा-राधा पर रिश्ता बेनाम रहा,
तड़पी मैं रैन दिवस पर विमुख मुरली वाला श्याम रहा,
नंद का तुझ पर ख़ूब दुलार रहा,
सुदामा का तू सच्चा यार रहा,
रुक्मिणी संग तेरा घर-वार रहा,
उर में जब तुम्हारे मैं बसी थी तो,
तुम अपना मुझको कह क्यों नहीं पाए?
क्या हूँ मैं तुम्हारी? जब भी पूछा मैंने तुमसे,
तुम मौन खड़े पाए।

मैं तेरी ही प्रेम दिवानी थी, मैं तेरी ही मस्तानी थी,
मेरी रग-रग में तू था, मैं तेरे प्यार की रवानी थी,
याद तुम्हारी आती हैं, अँखियाँ आँसू भर लाती है,
जब भी जाती हूँ पनघट पे, सखियाँ कहती जाती हैं,
बृज की गलियों में, कान्हा के उर की रंग-रलियो में,
मुरली की धुन में, उपवन की कलियों में,
राधा तेरा ही चर्चा रहता है,
नंद का छोरा तुझ पर मरता है,
मुझ पर मर मिटने वाले कान्हा,
तुम मुझे संगिनी क्यों नहीं बना पाए?
क्या हूँ मैं तुम्हारी...
सबके रहे सदा तुम कान्हा पर मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ,
तेरी ख़ातिर कान्हा मैं हरदम दुनियाँ से न्यारी हूँ,
सब कहते भगवान हो तुम, भगवान सबका होता है,
फिर क्यों तुमने मुझको रोता छोड़ा है? मुखड़ा मोड़ा है,
भक्तों के सदा कृपालु रहे तुम,
दुखियों के सदा दयालु रहे तुम,
सब पर दया करने वाले कान्हा,
तुम मुझ पर क्यों तरस नहीं खाए?
क्या मैं तुम्हारी...

(कृष्ण राधा से)

इतना सुनकर कान्हा बोले राधा बस,
और नहीं सुन सकता कुछ मैं अब,
कान्हा जब राधा से कहने लगे,
संग-संग उनके भी अश्रु बहने लगे,
राधा मैं प्रेम की पराकाष्ठा को समझता हूँ,
तेरा सच्चा प्रेम और उसकी निष्ठा को समझता हूँ,
राधा सच्ची तेरी प्रीत है,
मेरे होंठों पर भी तेरा गीत है,
मगर मैं तुझे कुछ दे नहीं पाया,
ये भी मुझे अफ़सोस है।
मगर राधा ये कान्हा तुझे एक पहचान देकर जाएगा,
मोहन से पहले जगत में राधा तेरा नाम लिया जाएगा,
कान्हा बोले मेरे दिल से तुझे ये ही वरदान मिलेगा,
जब भी मेरा स्मरण होगा सारा जहान राधे-राधे नाम जपेगा।

शिवचरण सदाबहार - सवाई माधोपुर (राजस्थान)

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