नारी - कविता - ब्रजेश कुमार

नारी के बिना सृष्टि की रचना असंभव है,  
इस से ही जग में जीवन का उद्भव है। 
प्रकृति के कण-कण में है नारी का अंश, 
फिर भी क्यों झेलती है भेदभाव का दंश। 
कौन कहता है कमज़ोर और अबला है नारी,
फूल सी कोमल तो कभी ज्वाला है नारी। 
नारी है, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा स्वरूप,
त्याग, शक्ति, दया, ममता इसके अनेकों रूप।
नारी, सीता के रूप में त्याग की पराकाष्ठा है,
तो राधा रूप में निश्छल प्रेम की परिभाषा है। 
कभी गार्गी बन के उपनिषद भी रचती है,
तो सावित्री बन यमराज से लड़ने का साहस भी रखती है।   
कभी लक्ष्मीबाई, तो कभी मदर टेरेसा है नारी, 
कभी आयरन लेडी, तो कभी स्वर कोकिला है नारी। 
संसार में बचा नहीं ऐसा कोई भी काम, 
जिसमें नारी ने किया न हो, उँचा अपना नाम।
नारी, माँ, पत्नी, बहु, बहन, या बेटी है,
बिना इसके परिवार की कल्पना भी खोटी है।  
नारी हर राष्ट्र के विकास की धुरी है,
इसका सम्मान हर समाज में ज़रूरी है।

ब्रजेश कुमार - पटना (बिहार)

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