भारत की आत्मा हिमालय - गीत - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

गंगा जमुना सरस्वती की, बहती जहाँ है धारा।
वह देव भूमि है अपनी, है भारत वर्ष हमारा।।

कण-कण में बसे हैं शंभू।
भारत का ताज है जंम्बू।।
उत्तर में हिम है हिमालय।
हैं अमर केदार शिवालय।।
बहे मंद-मंद मंदाकिन।
शिव पार्वती हैं ताकिन।।
जहाँ हरि के चरण पड़े हैं।
बदरी माया ले खड़े हैं।।

पावन जहाँ हरि की पैड़ी, विष्णु ने जिसे सँवारा।
वह देव भूमि है अपनी, है भारत वर्ष हमारा।।

जिसके आग़ोश में नदियाँ।
जिसको देखें दिनरतियाँ।।
बहती गंग अविरल धारा।
जग में है सबसे न्यारा।।
माँ चंडी मनसा धरती।
सबके कष्टों को हरती।।
जंम्बू में वैष्णो देवी।
कश्मीर संस्था सेवी।।

जहाँ अमरनाथ बर्फ़ानी जन-जन का बनें सहारा।
वह देव भूमि है अपनी, है भारत वर्ष हमारा।।

है देहरादून रजधानी।
मंसूरी रात की रानी।।
जहाँ शिमला और है जंम्बू।
खड़े हिम खंडों पर तंम्बू।।
बार्डर है पाक चीन का।
सीमा है मेख मीन का।।
हैं जमनोत्तरी, गंगोत्री।
जहाँ सैल-सुता सी पुत्री।।

हिम से हैं ढकी वादियाँ, झरनों से भरा नज़ारा।
वह देव भूमि है अपनी, है भारत वर्ष हमारा।।

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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