बात - दोहा छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

कौन कहाँ अति बोलता, कौन कहाँ सहि लेत।
सहिष्णुता भारी पड़ी, चक्रवात सम बेंत।।

बात होत है मधुकरी, प्राण देय बल गात।
अपशब्दन की कोठरी, जस अँधियारी रात।।

कबहुँ कटुक नहिं बोलिए, अमृत बरसै बात।
'अंशु' धरा से नभ चढै, प्रगति पंथ अवदात।।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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