उसकी कैसी जीवन रेखा - कविता - राघवेंद्र सिंह

जो लड़ा नहीं है लहरों से
उसने कैसा सिंधु देखा,
जो आत्म विभूषित हुआ नहीं
उसकी कैसी जीवन रेखा।

जो बढ़ा नहीं है पथ पर तो
वो क्या जाने संघर्ष राह,
जो संकल्पित है हुआ नहीं
वो क्या जाने नित स्वप्न चाह।

जिसको अरुणोदय पता नहीं
वो असंख्य रश्मियाँ क्या जाने,
जिसने खद्योत को कहा भ्रमर
वो तम सिसकियांँ क्या जाने।

जिसने न देखा बुद्ध कभी
वो क्या जाने क्या शुद्ध यहांँ,
जिसने न देखे वीर पुरुष
वो क्या जाने क्या युद्ध यहांँ।

जिसने न साधा गांडीव
अर्जुन का पौरुष क्या जाने,
जिसने न साधा लक्ष्य कोई
वह स्वयं का पौरुष क्या जाने।

यदि साध गया कोई पौरुष
मरु से भी जल निकलेगा ही,
आत्म शंख की सुन पुकार
ले विजय का रथ निकलेगा ही।

जो स्वयं के रव को जानेगा
एक दिन वह स्वयं को भाएगा,
जो रचा स्वयं ही व्यूह कोई
उसे तोड़ स्वयं ही जाएगा।

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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