हे स्त्री! तुम शक्ति की प्रतिमूर्ति - कविता - आशीष कुमार

तुम अष्टभुजा तुम सरस्वती,
तुम कालरात्रि तुम भगवती,
हे स्त्री! तुम शक्ति की प्रतिमूर्ति।

ज्ञान का भंडार खोलती,
शंकराचार्य का दंभ तोड़ती,
जब बनती तुम भारती।

युद्ध क्षेत्र में क़दम रखती,
दुष्टों का संहार करती,
जब वीरांगना लक्ष्मीबाई तुम बनती।

राजनीति की राह अपनाती,
सारी दुनिया भी हिल जाती,
जब तुम इंदिरा बन जाती।

सुदूर नभ में अंतरिक्ष यान उड़ाती,
एक नया वैज्ञानिक आयाम बनाती,
जब तुम कल्पना सुनीता बन जाती।

सर्वगुण से संपन्न करती,
सारी इच्छा पूर्ति करती,
माँ के रूप में जब हमसे मिलती।

हे स्त्री! तुम शक्ति की प्रतिमूर्ति।

आशीष कुमार - रोहतास (बिहार)

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