वेदना के स्वर - कविता - कवि सुदामा दुबे

वेदना के स्वर लिए वो श्वास के सितार पर,
हिये से अधीर हुई लुटे से दयार पर।

नीर लिए नैनों में कर रही विलाप वो,
देख रही बार बार बिखरी सी बहार पर।

तोड़ गए रिश्ते सभी पात सुमन शाख़ से,
दूर को गए कहीं वो बैठ रथ बयार पर।

छाँव से हुई विहीन काँप रही ताप से,
लग रही ठगी ठगी अचेत सी अधार पर।

बेरी बावरा पतझड़ आया उसके द्वारे में
चोंट कर गया भारी उसके तन शृंगार पर।

कवि सुदामा दुबे - सीहोर (मध्यप्रदेश)

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