आईना - कविता - आराधना प्रियदर्शनी

जो हँसोगे तुम तो हँसेगा वो,
जो रो दोगे तो रोएगा,
जो उदासी आई चेहरे पर तुम्हारे,
तो वह भी रौनक अपनी खोएगा।

आपकी प्रतीक्षा में अडिग रहता है,
अपनी सत्य बंधुता से कभी नहीं डोलता,
ग़लतफ़हमी की तो कोई जगह ही नहीं,
आईना कभी झूठ नहीं बोलता।

सब कुछ पारदर्शित है उसके सामने,
कैसे उसे भटकाओगे,
चाह कर भी वास्तविकता अपनी छवि की,
उससे छुपा नहीं पाओगे।

ख़ुद को देखकर तुम में,
हम हर्षित होते मन ही मन में,
ना खूबियाँ ना कमियाँ,
कुछ भी छुपता नहीं है दर्पण में।

ऐसी कोई दुल्हन नहीं इस जग में,
जो देख तुम्हें शरमाई ना हो,
तुम से बेहतर कौन दर्शा सकता है अक्स मेरा,
इसलिए तो तुम निष्पक्ष और निश्छल आईना हो।

आराधना प्रियदर्शनी - बेंगलुरु (कर्नाटक)

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