तुम्हारा स्पर्श - कविता - सुरेंद्र प्रजापति

तुम्हारा स्पर्श
मिट्टी के सोंधी महक में लिपटी,
काग़ज़ पर उतरती है;
और तब एक कविता
दूब के साथ उपजती है।

फिर शब्द-शब्द
प्रतीक्षा में निमग्न होकर
जब पढा जाता है,
जीवन की तरह
तब जाकर प्रेम उपजता है।

नदी, जंगल, पहाड़ से,
धरती का सौंदर्य महकता है।

सुरेंद्र प्रजापति - बलिया, गया (बिहार)

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