लौट आया कोरोना - कविता - गुड़िया सिंह

सुने हो गए सड़क चौराहे,
फिर से,
हर तरफ़ ही भय का शोर है,
किसकी है, ख़ता यह,
किसका यह क़सूर है।
छुप गए है लोग घरों में,
ख़ुद को क़ैद कर बैठे है,
अपनी ही कुछ नादानियों से,
ख़तरा मुस्तैद कर बैठे है।
पिछले साल भी फैला था,
यही दहशत,
कितनो ने ज़ान गवाई,
फिर अचानक भूल गए सब,
सब ने ही की कुछ लापरवाही।
अपनी ही जान के,
दुश्मन सभी बन बैठे है,
अपनी कुछ नादानियों से,
खतरा मुस्तैद कर बैठे है।
घूम रहे थे निर्भय सभी,
मुख पर मास्क न लगाया,
सेनेटाइजर को भी कर 
दरकिनार,
सब ने कोरोना को वापस बुलाया।
अब ये लौटा है दुगनी ताक़त से,
लोग घरों में छुप कर बैठे है,
अपनी कुछ नादानियों से,
खतरा मुस्तैद कर बैठे है।

गुड़िया सिंह - भोजपुर, आरा (बिहार)

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