माँ का दूध नौ माह, मनुआ तुझ पर उधार,
एक दिवस में क्यूँ बंधे नारी जीवन उपकार।
बड़ा सुंदर बड़ा अनूठा, भारत नारी आधार,
सबसे सच्चा सबसे प्यारा, जीवनदायिनी संसार।
नारी माँ-ममता, आँचल-छाँव, निश्छल मृदुल व्यवहार,
नारी मांग-सिंदूर, भाई-राखी, माँ-बाप लाड़-दुलार।।
कभी गुथे हुए आटा लोइयों मेें मिलके,
कभी कपड़ों को रगड़ते, पीटते झलके।
नील की तरह बिखेरती अनुराग-प्यार,
फूके चूल्हा, सेके रोटी, जले पोरे बारम्बार।।
कभी खाने की मेज़ पर इंतज़ार में अटके,
स्नेह की दो बूँद आँखों से निकाल करके।
परोस देती खाली कटोरियों में प्रेम-अपार,
उकेरती मधुर पलों को, रखे नेह अपरम्पार।।
कभी बुखार तपे माथे पर गीली पट्टियां बनके,
बिछ जाती ललॉट रामदेव औषधि सी तनके।
झणिक उन्माद नही, विश्वास डोर मजबूत आधार,
ज्वार-भाटा नहीं नारी, पावन श्वेत निर्मल गंगधार।।
नारी त्याग-अनुराग-ठहराब किताब सी चमके,
जीवन को जीवन का गुल-ऐ-महताब सी दमके।
गंगा जमुनी दोआब-सी बन त्रिवेणी सी लहराती,
संस्कृति फसलों का जीवन नारी,सुधा धरा उगाती।।
तन-मन-धन सब कुछ अपना अर्पण करती नारी,
हम सब उसके कर्ज़दार, नित त्याग करती भारी।
आह! क्यौ दूध भरी छाती फिर से नौची जाती,
आख़िर माँ बहिनें गलियों-चौवारों से क्यूँ थर्राती।।
आओ हम सब मिलकर पुरजोर प्रतिकार करें,
जो उठे निगाहें आँचल पर, समुचित प्रहार करे।
हे नमो, हे शाह, हे योगी करो, जग दुष्टों का संहार,
नारी अस्मिता रक्षा का करो, अभेद अजेय उपचार।।
अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)