पैसों की बेबसी - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

पैसों का नित जंग है, पैसा ही नवरंग।
रिश्ते नाते मान यश, बिन पैसे बदरंग।।१।।

पैसे ही ऊँचाइयाँ, पैसे ही सम्मान।
पैसों के महफ़िल सजे, पैसा ही भगवान।।२।।

पैसों पर शिक्षा टिकी, पैसों पर रोज़गार।
हो समाजी हैसियत, रिश्तों का आधार।।३।।

नीचे से संसद तलक, बस पैसों का खेल।
आजीवन हर काम में, पैसों का गठमेल।।४।।

रोज़ रोज़ का झूठ छल, राग द्वेष अपमान।
बस पैसों की चाह में, लेना है अहसान।।५।।

पैसा ही इन्सानियत, पैसा ही ईमान।
आतिथेय पैसा टिका, मानद या अरमान।।६।।

न्यायगेह में न्याय अब, पैसों पर है प्राप्त।
बिन पैसे की ज़िंदगी, कहाँ मिलेंगे आप्त।।७।।

पति पत्नी माँ बाप हो, बेटा बेटी साथ।
पैसों से सब हैं जुड़े, छुटे पैसे बिन हाथ।।८।।

चकाचौंध रूमानियत, है उन्नति आधार।
धर्म जाति भाषा जगह, पैसा ही तकरार।।९।।

पैसों से खिलता चमन, पैसा ही मुस्कान।
कौन पराया या अपन, पैसे से पहचान।।१०।।

मीत नीति मन प्रीति हो, वैवाहिक आचार।
बिना अर्थ सब व्यर्थ ही, जीवन है दुश्वार।।११।।

बिन पैसों का आदमी, जीवन है सुनसान।
लावारिश फेंका हुआ, लाश जन्तु तू मान।।१२।।

पैसों की हैं चाबुकें, इंसानों की पीठ। 
पर पैसों की बेबसी, ज़िंदा है बन ढीठ।।१३।।

दौलत की चाहत बला, बनता निर्मम लोक।
छल कपटी मिथ्या निरत, पैसा जीवन शोक।।१५।।

कवि निकुंज महिमा अगम, पैसा मायाजाल।
रख डिग्री संदूक में, बिन पैसे बदहाल।।१६।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos